Entertainment/News – बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान (Bolloybood Acter Saif Ali Khan) को बड़ा कानूनी झटका लगा है, जब मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने भोपाल (Bhopal) की अपनी पैतृक संपत्ति को “शत्रु संपत्ति” घोषित किए जाने के सरकारी निर्णय को चुनौती दी थी। इस फैसले से उनकी लगभग 15,000 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति पर दावे की लड़ाई खत्म हो गई है,
यह मामला भारत के सबसे चर्चित और संवेदनशील शाही संपत्ति विवादों में से एक रहा है, जो अब एक बार फिर से देशभर में बहस का विषय बन गया है। आइए समझते हैं इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि, कानूनी पेचदगियों, और इसके व्यापक प्रभाव को।
संपत्ति की पृष्ठभूमि: भोपाल नवाब की ऐतिहासिक विरासत
सैफ अली खान का संबंध पटौदी और भोपाल के शाही खानदानों से है। उनकी परदादी, आबिदा सुल्तान, भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी थीं। आबिदा ने भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने का फैसला किया था, और वहाँ की नागरिकता स्वीकार की थी। इसी एक निर्णय ने आने वाले दशकों में उनके वंशजों के लिए जटिल कानूनी विवादों की नींव रख दी।
शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत –
भारत सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम (Enemy Property Act) पारित किया था। इस कानून के तहत उन संपत्तियों को “शत्रु संपत्ति” घोषित किया गया, जिनके मालिक या उत्तराधिकारी भारत के शत्रु देश (जैसे पाकिस्तान या चीन) में चले गए थे और वहाँ की नागरिकता ले ली थी। इन संपत्तियों को फिर भारत सरकार द्वारा नियंत्रित और अधिग्रहित किया गया। आबिदा सुल्तान के पाकिस्तान जाने और भारतीय नागरिकता छोड़ने की वजह से, उनकी संपत्ति इस अधिनियम के दायरे में आ गई।
कानूनी लड़ाई:
2000 सन में स्थानीय ट्रायल कोर्ट ने फैसला दिया कि सैफ अली खान, उनकी मां शर्मिला टैगोर, और बहनें सोहा और सबा अली खान, आबिदा सुल्तान के उत्तराधिकारी हैं, और वे संपत्ति पर अधिकार रखते हैं। हालांकि, नवाब हमीदुल्लाह खान के अन्य वंशजों ने इस निर्णय को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत चुनौती दी, जिसमें यह तर्क था कि भारतीय कानून के अनुसार उत्तराधिकार का अधिकार पाकिस्तान की नागरिकता लेने वालों को नहीं मिल सकता।

2014 में भारत सरकार के शत्रु संपत्ति विभाग ने इस संपत्ति को औपचारिक रूप से “शत्रु संपत्ति” घोषित कर दिया। सैफ अली खान ने 2015 में इस पर अस्थायी रोक (stay order) हासिल कर ली थी, परंतु मामला आगे बढ़ता गया।
अंतिम अदालत का फैसला
13 दिसंबर 2024 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सैफ की याचिका को खारिज कर दिया और 2000 सन के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया। यह फैसला सैफ और उनके परिवार के लिए करारा झटका साबित हुआ। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि:
- आबिदा सुल्तान के पाकिस्तान जाने और नागरिकता त्यागने के बाद उनकी संपत्ति शत्रु संपत्ति अधिनियम के अंतर्गत आती है।
- इस मामले में भारत सरकार का दावा वैध है।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि सैफ और उनके परिवार ने इस फैसले के खिलाफ 30 दिन की समय सीमा में कोई अपील नहीं की, जिससे सरकार को आगे की कार्रवाई के लिए पूरी छूट मिल गई।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने न केवल याचिका खारिज की, बल्कि ट्रायल कोर्ट को एक साल के भीतर पुनः सुनवाई कर निर्णय देने का निर्देश भी दिया है। इस आदेश से एक बात साफ होती है, मामला पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन सरकार की स्थिति अब काफी मजबूत हो चुकी है।
भोपाल जिला प्रशासन अब जल्दी ही संपत्ति अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। इन संपत्तियों में ऐतिहासिक भवन, महल, ज़मीनें और अन्य मूल्यवान संपत्तियां शामिल हैं।
सैफ अली खान की प्रतिक्रिया और अगला कदम?
अब तक सैफ अली खान ने इस मामले पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि यह तय है कि यह निर्णय भावनात्मक और आर्थिक दोनों दृष्टि से एक बहुत बड़ी क्षति है। सैफ के पास अब सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का विकल्प है, लेकिन इसके लिए समय और प्रमाण दोनों की सख्त जरूरत होगी।
सैफ अली खान का यह मामला केवल संपत्ति या पैसे की लड़ाई नहीं है यह एक इतिहास, विरासत और पहचान की लड़ाई है। जहां एक ओर भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और कानूनी औचित्य का पालन कर रही है, वहीं दूसरी ओर एक पारिवारिक विरासत का अंत होने जैसा अहसास भी है।
इस निर्णय ने केवल सैफ और उनके परिवार को प्रभावित किया है, बल्कि पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर किया है कि कानून, इतिहास और भावनाएं, इन तीनों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन यह निश्चित है कि भारत के कानूनी और सामाजिक इतिहास में यह एक मील का पत्थर बनकर दर्ज हो चुका है।