बिहार की राजनीति में शोक की लहर – Kali Prasad Pandey Death News
नई दिल्ली/पटना। बिहार की राजनीति के बड़े नाम और ‘शेर-ए-बिहार’ की उपाधि से प्रसिद्ध गोपालगंज के पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का शुक्रवार (22 अगस्त 2025) की रात निधन हो गया। दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने रात करीब 9:30 बजे अंतिम सांस ली। 78 वर्षीय काली पांडेय लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन की खबर मिलते ही गोपालगंज जिले समेत पूरे बिहार की राजनीति में शोक की लहर दौड़ गई।
Kali Prasad Pandey Death News. काली प्रसाद पांडेय अपने पीछे पत्नी मंजुमाला पांडे, भाई और भाजपा एमएलसी आदित्य नारायण पांडे, पुत्र पंकज कुमार पांडे, धीरज कुमार पांडे, बबलू पांडे समेत पूरे परिवार को छोड़ गए हैं। परिवार के अलावा हजारों समर्थक और शुभचिंतक इस दुखद खबर से गहरे सदमे में हैं।
गंडक नदी किनारे से राजनीति की शुरुआत किया था,
गोपालगंज जिले के विशंभरपुर थाना क्षेत्र के रमजीता गांव में स्वर्गीय भगन पांडेय के घर जन्मे काली प्रसाद पांडेय का जीवन संघर्ष और साहस से भरा रहा। युवावस्था में उन्होंने अपने इलाके में सक्रिय जंगल पार्टी और अपराधियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने युवाओं को संगठित कर एक ऐसा संगठन खड़ा किया, जिसने उनके राजनीतिक करियर की नींव रखी।
1980 में उन्होंने पहली बार गोपालगंज विधानसभा से चुनाव लड़ा और विधायक बने। इस जीत के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और स्थानीय राजनीति में उनकी पहचान एक जुझारू और दबंग नेता की बन गई।
जेल से लड़ा लोकसभा चुनाव, कांग्रेस प्रत्याशी को हराया – Kali Prasad Pandey Death News
काली प्रसाद पांडेय के राजनीतिक जीवन का सबसे चर्चित अध्याय 1984 का लोकसभा चुनाव माना जाता है। उस समय वे हत्या के आरोप में जेल में बंद थे और उन पर बाहुबली छवि का ठप्पा लग चुका था।
इसी दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और पूरे देश में कांग्रेस की लहर चल रही थी। बावजूद इसके काली प्रसाद पांडेय ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जेल से ही चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व सांसद नगीना राय को रिकॉर्ड मतों से हराकर सभी को चौंका दिया। उनकी यह जीत बिहार की राजनीति में नया इतिहास लिख गई।
‘शेर-ए-बिहार’ की उपाधि और दबंग नेता की पहचान कैसे मिली,
Kali Prasad Pandey Death news लोकसभा में जीत के बाद काली पांडेय की लोकप्रियता और प्रभाव इतना बढ़ गया कि उन्हें ‘शेर-ए-बिहार’ की उपाधि दी गई। उनके साहस, दबंग छवि और जनसंपर्क क्षमता ने उन्हें जनता का सच्चा नेता बना दिया।
उनकी छवि को लेकर बिहार की राजनीति में काफी चर्चाएं रहीं और यहां तक कि उनकी लोकप्रियता के चलते उन पर आधारित प्रतिघात फिल्म तक चर्चा में आई। वे हमेशा अपराध के खिलाफ बोलते रहे और गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों की आवाज बने।
काली प्रसाद पांडेय का राजनीतिक सफर कई दलों से होकर गुजरा। लोकसभा जीत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलाई। इसके बाद उन्होंने राजद और लोजपा से भी राजनीति की, हालांकि दोबारा चुनाव जीतने में उन्हें सफलता नहीं मिली।
अंततः वे फिर से कांग्रेस में लौट आए और पार्टी की नीतियों के साथ जुड़े रहे। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय तक सक्रिय राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
Kali Prasad Pandey Death News 2025
काली प्रसाद पांडेय सिर्फ एक बाहुबली या दबंग नेता ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने अपने क्षेत्र के युवाओं को संगठित कर अपराध के खिलाफ संघर्ष की राह दिखाई। वे जनता की समस्याओं को उठाने और सत्ता से टकराने में कभी पीछे नहीं हटे।

उनका पूरा जीवन संघर्ष, साहस और राजनीतिक सक्रियता का उदाहरण रहा। उनके निधन को बिहार की राजनीति के एक युग का अंत माना जा रहा है। गोपालगंज समेत पूरे बिहार में उनके समर्थक शोकाकुल हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
परिवार और निजी जीवन –
काली प्रसाद पांडेय का जन्म 28 अक्टूबर 1946 को भोजछापर गांव, कोचाईकोट प्रखंड, गोपालगंज जिला, बिहार में हुआ था। वे लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। 1980 से 1984 तक वे बिहार विधान सभा के सदस्य रहे। बाद में वे 1984 से 1989 तक गोपालगंज से लोकसभा सांसद भी रहे। उनकी पत्नी मंजुमाला पांडे, तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं। उनके छोटे भाई आदित्य नारायण पांडे भाजपा से एमएलसी हैं।
Kali Prasad Pandey Death News
काली प्रसाद पांडेय का निधन सिर्फ एक व्यक्ति का निधन नहीं है, बल्कि बिहार की राजनीति में उस दौर का अंत है, जब बाहुबल, जनसंपर्क और संघर्षशील छवि के आधार पर नेता जनता का नायक बनते थे।
‘शेर-ए-बिहार’ के नाम से मशहूर काली प्रसाद पांडेय को हमेशा साहस, संघर्ष और जननायकत्व की मिसाल के रूप में याद किया जाएगा।