अभाविप गोपालगंज ने स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अर्पित की श्रद्धांजलि

गोपालगंज/बिहार, – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप/Abvp) के गोपालगंज जिला इकाई द्वारा स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि के अवसर पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन अभाविप जिला कार्यालय पर किया गया, जहाँ कार्यकर्ताओं ने स्वामी विवेकानंद की तैलीय प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अभाविप के विभाग संयोजक अनिश कुमार ने कहा, “स्वामी विवेकानंद असंख्य युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर गौरव दिलाया और युवाओं को आत्मविश्वास तथा आत्मबल से परिपूर्ण बनाने का मार्ग दिखाया।”

स्वामी विवेकानंद
गोपालगंज में अभाविप ने स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अर्पित की श्रद्धांजलि

सभा में उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं ने स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को आत्मसात करने तथा उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।इस अवसर पर राष्ट्रीय कला मंच की प्रांत सह संयोजक हर्षिता कुमारी, प्रांत कार्यकारिणी सदस्य रोहित जयसवाल, (Rohit Jaiswal) एसएफएस जिला संयोजक विवेक कुमार, (Vivek Kumar) नगर सह मंत्री कविता ब्याहुत, (Kavita Byahut) साक्षी उपाध्याय, (Sakshi Upadhaya) तथा वीएचपी प्रचारक रविकांत कुमार  (Ravikant Kumar) सहित कई कार्यकर्ता मौजूद रहे।

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda’s) भारतीय इतिहास के एक महान संत, विचारक और राष्ट्रनिर्माता थे, जिन्होंने न केवल भारत (Bharat) में बल्कि पूरे World (विश्व) में भारतीय संस्कृति, वेदांत और योग का प्रचार किया। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता Tatkalin Kolkata (तत्कालीन कलकत्ता) में एक बंगाली (Bangali Family) परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त (Narendranath Dut( था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त (Father’s name Vishwanath Dut) प्रसिद्ध वकील थे, और माता भुवनेश्वरी देवी (Mother’s name Bhuneshwari Devi) धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। स्वामी विवेकानंद का जीवन संघर्ष, साधना, सेवा और सशक्त विचारों का संगम था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा – स्वामी विवेकानंद  बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, जिज्ञासु और आत्मविश्वासी थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन से प्राप्त की और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, महाभारत, रामायण जैसे ग्रंथों के साथ-साथ पाश्चात्य दर्शन और विज्ञान में भी गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने शंकाओं और तर्कों के माध्यम से सत्य की खोज की। वे सत्य को केवल पढ़कर नहीं, बल्कि अनुभव करके जानना चाहते थे।

रामकृष्ण परमहंस से भेंट – स्वामी विवेकानंद का

उनकी आध्यात्मिक यात्रा को दिशा तब मिली जब वे दक्षिणेश्वर के संत श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले। नरेंद्र ने उनसे सीधा प्रश्न पूछा: “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” रामकृष्ण (Ramkishna) ने उत्तर दिया: “हाँ, मैंने ईश्वर को वैसे ही देखा है जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ, और मैं तुम्हें भी ईश्वर का साक्षात्कार करा सकता हूँ।” यह उत्तर स्वामी विवेकानंद के मन पर गहरी छाप छोड़ गया। उन्होंने रामकृष्ण को गुरु रूप में स्वीकार किया और उनके सान्निध्य में आत्मबोध, सेवा, त्याग और साधना की राह पर चल पड़े।

संन्यास और भारत भ्रमण – स्वामी विवेकानंद का,

रामकृष्ण परमहंस के देहावसान के बाद स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda’s) ने संन्यास ग्रहण कर लिया और “स्वामी विवेकानंद” के नाम से पहचाने जाने लगे। वे कुछ वर्षों तक भारतवर्ष में भ्रमण करते रहे। उन्होंने हिमालय, दक्षिण भारत, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा और अन्य स्थानों (Himalaya, South Bharat, Gujarat, Rajasthan, Maharashtra, Odisha, की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने भारत के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक हालात को नज़दीक से देखा। उन्होंने देखा कि किस प्रकार अज्ञानता, गरीबी और जात-पात के कारण देश कमजोर होता जा रहा है। इन यात्राओं ने उनके भीतर सेवा और राष्ट्रनिर्माण की प्रबल भावना उत्पन्न की।

शिकागो धर्म में स्वामी विवेकानंद महासभा में भाषण

स्वामी विवेकानंद का सबसे ऐतिहासिक क्षण 11 सितंबर 1893 को आया, जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा (World’s Parliament of Religions) में भारत और हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “Sisters and Brothers of America” कहकर की, जिससे पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इस भाषण में उन्होंने हिन्दू धर्म की सहिष्णुता, सार्वभौमिकता, आध्यात्मिकता और विश्व बंधुत्व के सिद्धांतों को स्पष्ट किया।

उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी धर्म सत्य की ओर जाने के विभिन्न मार्ग हैं, और भारत सदियों से “वसुधैव कुटुंबकम्” (पूरा विश्व एक परिवार है) की भावना में विश्वास करता रहा है। इसके बाद वे America (अमेरिका) और यूरोप के अनेक भागों में घूमे और व्याख्यान दिए। उन्होंने वेदांत और योग के विचारों को पश्चिमी दुनिया में स्थापित किया और भारत की संस्कृति का सम्मान बढ़ाया।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

भारत लौटने के बाद उन्होंने 1897 में “रामकृष्ण मिशन” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, राहत कार्य और आध्यात्मिक उत्थान। यह मिशन आज भी विश्वभर में कार्यरत है और विवेकानंद के विचारों को आगे बढ़ा रहा है। स्वामीजी का मानना था कि “नर सेवा ही नारायण सेवा है।” उन्होंने शिक्षा को मानव निर्माण, चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण का माध्यम माना।

स्वामी विवेकानंद के विचार

स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। उनके प्रमुख विचारों में निम्नलिखित विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:

  1. उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।
  2. एक विचार को पकड़ो, उसी को अपना जीवन बना लो – उसी के बारे में सोचो, उसी के सपने देखो और उसी विचार में डूब जाओ।
  3. हम वो हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है।
  4. देश की सेवा सबसे बड़ी पूजा है।
  5. नारी को शिक्षा और सम्मान दो, तभी समाज सशक्त होगा।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु और विरासत –

स्वामी विवेकानंद का जीवनकाल बहुत लंबा नहीं रहा। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में उन्होंने बेलूर मठ में महासमाधि ली। लेकिन इतने कम समय में उन्होंने जो कार्य किया, वह आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है। भारत सरकार ने उनके जन्मदिन को “राष्ट्रीय युवा दिवस” (12 जनवरी) के रूप में मनाने की घोषणा की है।

स्वामी विवेकानंद न केवल एक संन्यासी थे, बल्कि एक कर्मयोगी, विचारक और सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने पश्चिम को भारत का आध्यात्मिक संदेश दिया और भारत को उसकी खोई हुई आत्मा का स्मरण कराया। उनका जीवन एक जीवंत उदाहरण है कि किस प्रकार एक व्यक्ति अपने विचारों, संकल्प और कर्म से विश्व को बदल सकता है। आज का युवा यदि स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और शिक्षाओं को अपनाए, तो न केवल स्वयं का विकास कर सकता है, बल्कि राष्ट्र के उत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है!

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